आज भी बहुत से रामचंद्र छत्रपति हैं : श्रेयसी

कमलेश भारतीय की कलम से…

सिरसा के पूरा सच समाचारपत्र के संपादक और प्रकाशक रामचंद्र छत्रपति को कौन भूल सकता है पत्रकारिता में उनके योगदान को देखते हुए । एक छोटे शहर से , छोटे से समाचारपत्र ने ऐसा काम कर दिखाया जो बड़े बड़े मीडिया ग्रुप नहीं कर सके । अंधविश्वास का साम्राज्य हिला कर रख दिया । ऐसे पत्रकार की साहसी बेटी हैं -श्रेयसी ।

बहुत इच्छा थी कि इस बेटी से बात की जाये । आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बात हुई । सिरसा में महाराजा उग्रसेन स्कूल से जमा दो करने के बाद चौ देवीलाल विश्विद्यालय से जनसंचार की शिक्षा प्राप्त कर वह आजकल पंचकूला के गवर्नमेंट काॅलेज में नये पत्रकारों को पढ़ा रही हैं । उनकी शादी हो चुकी और पति इंश्योरेंस कम्पनी में ऑफिसर हैं ।
-अपने पिता पर क्या कहोगी ?
-सबसे पहली बात कि वे बहुत अलग इंसान थे । बहुत जर्नलिस्टों को मिली और मिलती रहती हूं । मेरे पापा को जैसे किसी खास मकसद के लिए कुदरत ने चुना था । बहुत गर्व महसूस होता है कि मैं रामचंद्र छत्रपति की बेटी हूं । हमारा सारा परिवार उनकी शहादत का साक्षी है । परिणाम भी सबने देखा । वह काली दास्तान कभी भूलने वाली नहीं ।

-आप पत्रकारिता करके भी पत्रकार नहीं बनीं ?
-जी । बहुत इच्छा थी कि पत्रकार ही बनूं लेकिन परिस्थितियों के चलते पत्रकारिता सिखाने वाली प्राध्यापिका बन गयी । बहुत पैशन था पत्रकार बनने का । नये पत्रकारों को सही दिशा दिखाने का अवसर मिला है ।

-क्या पापा का चलाया अखबार चला रहे हो ?
-नहीं अंकल । मेरे भाई अंशुल खेती संभाल रहे हैं । बहुत समय केस लड़ने में निकल गया । कभी सोचते हैं कि ऑनलाइन एडीशन ही निकल लें पर अभी कुछ तय हुआ नहीं ।

-आज मीडिया को गोदी मीडिया कहा जाता है । इस बारे में क्या कहोगी ?
-यह काफी हद तक सही है । बड़ी विडम्बना है कि बड़े मीडिया व समाचारपत्र माउथपीस बन कर रह गये । आम लोगों की बात नहीं उठाते । कतरा कर निकल जाते हैं । इनमें कोई कोई अभिमन्यु मौजूद हैं । बस । यही राहत की बात है । छोटे छोटे यू-टयूब चैनल अपना रोल अच्छा नींबू रहे हैं । हर कोई रामचंद्र छत्रपति नहीं होता लेकिन बहुत से छत्रपति अभी मौजूद हैं ।

-लक्ष्य क्या ?
-लक्ष्य को जी रही हूं अंकल । नयी पीढ़ी तैयार करने का सुअवसर मिला है । यह क्या कम है ?

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. वह @kamleshbhartiya पर ट्वीट करते हैं.)

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