No politics on MSP: हरियाणा लगता है, एक बार फिर किसान आंदोलन का केंद्र बन गया है। सूरजमुखी की फसल को एमएसपी पर खरीद की मांग को लेकर अड़े किसानों ने चंडीगढ़-दिल्ली हाईवे को अपना हथियार बना लिया है और इसे जाम करके जहां अपनी मांगों को मनवाने में जुटे हैं, वहीं जनता को बेहाल किया जा रहा है। यह तब है, जब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने साफ तौर कहा है कि हाईवे को नहीं रोका जा सकता और सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि हाईवे को खुलवाए। इससे पहले शाहाबाद में किसानों ने हाईवे को बाधित कर दिया था, जिस पर प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए किसानों को हटाया लेकिन अब वे कुरुक्षेत्र में पिपली में जम गए हैं।
हालांकि सरकार की ओर से भावांतर भरपाई योजना के तहत सूरजमुखी के उत्पादक किसानों को अंतरिम सहायता राशि एक हजार रुपये प्रति क्विंटल के रूप में 8528 किसानों को 29.13 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं, वहीं प्रदेश में दूसरे राज्यों की तुलना में सर्वाधिक बाजार भाव दिया जा रहा है, तब भी प्रदेश के किसान संगठनों ने एमएसपी की मांग को लेकर हल्ला बोला हुआ है।
सरकार का दावा है कि इस समय हरियाणा में सर्वाधिक 5900 रुपये प्रति क्विंटल राशि दी जा रही है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल कह चुके हैं कि अगर हरियाणा में ही एमएसपी दी जाएगी तो दूसरे राज्यों के किसानों की सूरजमुखी भी यहां आने लगेगी। इस बीच किसानों की महापंचायत जारी है, उनकी ओर से लगातार दबाव बनाया जा रहा है। उनकी नई मांगों में एमएसपी के अलावा उन किसानों की रिहाई की मांग भी शामिल हो गई है, जिन्हें शाहाबाद में गिरफ्तार किया गया था। सरकार की अनोखी मजबूरी होती है कि वह मांगों को पूरा करने से इनकार करती रहती है, लेकिन इस दौरान संगठनों का दबाव बढ़ता जाता है और उसे कोई कदम उठाना पड़ता है। पिछले दिनों शाहाबाद में किसानों पर हुए लाठीचार्ज में कुछ किसान घायल हुए थे, वहीं उन्हें हिरासत में लेकर उन पर केस भी दर्ज हुए थे। इस कार्रवाई के बाद शाहाबाद के एसडीएम को बदल दिया गया। निश्चित रूप से व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे, लेकिन फिर सरकार अपने ही अधिकारियों का अगर तबादला करती है तो इससे आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद होते हैं।
दरअसल, जरूरत इसकी है कि किसान आंदोलन करें, प्रदर्शन करें, अनशन करें लेकिन वे किसी भी सूरत में हाईवे को न रोकें। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान पूरे देश ने यह देखा है कि किसानों ने जहां हाईवे को कब्जा कर लिया वहीं भावनात्मक रूप से लोगों को अपने साथ जोडक़र अपने आंदोलन को सफल करा लिया। देश में ज्यादातर आबादी ऐसी है, जिसकी अपनी विचारधारा नजर नहीं आएगी, उसका अपना विवेक भी नहीं दिखेगा। वह बस भीड़ का हिस्सा बनकर आगे बढ़ जाती है।
यह पूरा प्रकरण राजनीति से प्रेरित ज्यादा नजर आता है। मोदी सरकार ने बीती सरकारों से कहीं ज्यादा किसानों के लिए योजनाएं बनाई हैं, वहीं राज्यों में भी किसानों को काफी सहूलियत दी गई हैं, लेकिन विपक्ष को अपने आंदोलन के लिए सबसे बेहतर राज्य हरियाणा ही मिल रहा है। हालात ऐसे हैं कि खेती-बाड़ी में सुधार के लिए विपक्ष की सरकारों ने भी प्रयास किए हैं। पूर्व में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार के वक्त खेती-किसानी के संबंध में मुख्यमंत्रियों की कमेटी बनाई गई थी, जिसने अपनी सिफारिशें वैसी ही दी थी, जैसी कि तीन कृषि कानूनों में मोदी सरकार ने की।
हालांकि विरोध का बवंडर ऐसा उठा कि उसने सत्ता विरोधी लहर पैदा करते हुए तीनों कानूनों को वापस लेने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इन कानूनों के जरिये भारतीय कृषि के भविष्य में मील के नए पत्थर लग सकते थे। आज भी भारतीय कृषि परंपरागत तरीके से संचालित हो रही है और आढ़ती किसानों के जरिये अपने व्यवसाय को संचालित कर रहे हैं। किसानों को उनकी मेहनत का पूरा फायदा नहीं मिल पा रहा और वे इसके लिए जिम्मेदार सरकार को बताते हैं।
वैसे, सूरजमुखी की खेती बेहद मेहनत मांगती है और इसका तेल कीमती होता है, हालांकि किसानों को उसका पूरा मोल नहीं मिलना चिंता की बात है। हरियाणा में इस समय सर्वाधिक कीमत सूरजमुखी की दी जा रही है लेकिन दूसरे राज्यों में यह सामान्य कीमत पर बिक रही है, तब फिर दूसरे राज्य भी क्यों नहीं एमएसपी या इसके बार कीमत पर खरीद करते। वास्तव में हरियाणा सरकार को इस मामले का समाधान करना होगा, किसानों के आंदोलन से हाईवे पर हालात खराब हैं और आगामी समय में यह राजनीतिक मुद्दा भी बनने जा रहा है। बेशक, विपक्ष इस समय सरकार की आलोचना करे लेकिन किसानों की सभी मांगों को पूरा करना चुनौतीपूर्ण है। जरूरत पुख्ता समाधान की है, राजनीति की नहीं।