दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आपराधिक मामले में आरोपी द्वारा अंतरिम जमानत बढ़ाए जाने के लिए कोविड-19 से संक्रमित पाए जाने की फर्जी रिपोर्ट देने पर कड़ा रुख अपनाया है और आरोपी, उसके रिश्तेदारों, वकील, अस्पताल कर्मियों तथा पुलिस अधिकारी के खिलाफ न्यायिक जांच का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने कहा कि अदालत आने वाले सभी पक्षों को साफ रिकॉर्ड के साथ आना होता है खासतौर से महामारी के दौरान जब अदालतों की कोविड-19 से संक्रमित पाए जाने वाले लोगों के प्रति सहानुभूति रही है।
उन्होंने कहा कि इस सहानुभूति का फायदा उठाना और जाली रिपोर्ट पेश करना ‘‘बिल्कुल भी क्षमा योग्य नहीं’’ है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पंजीयक सतर्कता की जांच रिपोर्ट के नतीजे अत्यधिक संतोषजनक हैं। अगर ऐसे गैरकानूनी कृत्यों को माफ किया गया और अगर माफी स्वीकार कर ली गई तो आपराधिक न्याय प्रशासन गंभीर खतरे में पड़ जाएगा। अदालत का स्पष्ट रूप से मानना है कि इस मामले से संबंधित सभी लोगों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाए।’’
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में पैरवी करने वाले वकीलों की यह बड़ी जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि अदालत की मर्यादा कम न हो और फर्जी तथा जाली दस्तावेजों के आधार पर आदेश पारित करने में अदालतों को गुमराह न किया हो।’’
उच्च न्यायालय ने महापंजीयक को इस मामले को जांच के लिए संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजने का निर्देश दिया। साथ ही याचिकाकर्ता आरोपी नरेंद्र कसाना, उसके चार भतीजों, गाजियाबाद में जिला एमएमजी अस्पताल के नर्सिंग सहायक और वकील आनंद कटारिया के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया।
यह मामला आरोपी नरेंद्र कसाना का है जिसे पिछले साल एक निचली अदालत से अंतरिम जमानत मिली थी। इसके बाद उसने जमानत अवधि बढ़ाए जाने का अनुरोध किया जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया। इस पर उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
उच्च न्यायालय ने कोविड-19 जांच रिपोर्ट के आधारवपर उसकी अंतरिम जमानत बढ़ा दी। रिपोर्ट में कहा गया था कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है। इसके बाद वह फरार हो गया और उच्च न्यायालय ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए तथा आखिरकार उसे गिरफ्तार कर लिया गया और अभी वह हिरासत में है।